माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
- गोपालदास "नीरज"
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिये
है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए
रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह
अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए
अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा
ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया
जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए
दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ
तुझको मुझसे इस समय सूने में मिलना चाहिए
- गोपालदास "नीरज"
तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा
तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा ।
सफ़र न करते हुए भी किसी सफ़र में रहा ।
वो जिस्म ही था जो भटका किया ज़माने में,
हृदय तो मेरा हमेशा तेरी डगर में रहा ।
तू ढूँढ़ता था जिसे जा के बृज के गोकुल में,
वो श्याम तो किसी मीरा की चश्मे-तर में रहा ।
वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की,
मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा ।
हज़ारों रत्न थे उस जौहरी की झोली में,
उसे कुछ भी न मिला जो अगर-मगर में रहा ।
*Poem 1:*
If my garland scatters, it's no big deal,
My problem solves itself.
If tears don't sell at auction,
Consider my penance complete.
Those who sulk, those who mend torn clothes,
A few lamps flickering out
Don't extinguish the courtyard's light.
Nothing's lost here; only book covers change,
Like night wears moonlight, morning sun's rays.
Those who change clothes, those who change paths,
Childhood doesn't die with lost toys.
Countless water pots broke, yet the well remains,
Countless boats sank, riverbank life persists.
Try as you may to shed leaves,
The garden doesn't wither.
The gardener plundered the garden, yet
The flower's fragrance lingers.
Storms may rattle, but dust won't settle,
Hatred embracing, dust still stirs.
Some faces may frown, but the mirror endures.
*Poem 2:*
There's too much darkness; the sun must rise.
This weather must change, no matter how.
Faces change daily, like clothes;
Their funeral procession should be loud.
Some still haven't sold their souls;
This downward spiral must cease.
Living as flowers, we're crushed;
We must be molded into steel.
When your rights are seized, don't shed tears;
A flame should erupt from your eyes.
With heart, dreams, and youth still vibrant,
We should meet in this desolate land.
*Poem 3:*
I spent my life in a stranger's home,
Yet felt like I was on a journey.
My body wandered, lost in the world,
But my heart remained on your path.
You searched for Krishna in Brindavan,
But he dwelled in Mirabai's eyes.
Others knew the stars' secrets,
While my homeland worried about bread.
A jeweler's pouch held countless gems,
But he found nothing amidst doubts.
[11/8, 8:26 PM] Dr. Shankar D Mishra: जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमकिन है जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं मुश्क़िल में इन्सान रहेगा
'नीरज' तो कल यहाँ न होगा उसका गीत-विधान रहेगा
[11/8, 8:26 PM] Meta AI: Here's the English translation of the poem:
The less baggage you have, the easier your journey will be.
The heavier your load, the more troubled you'll be.
As long as you're focused on yourself, meeting others is impossible.
Exchanging hands but not hearts will only bring loss.
As long as temples and mosques exist, humanity will struggle.
Though I, Neeraj, won't be here tomorrow, my poetry will endure.
This poem by Neeraj emphasizes the importance of simplicity, selflessness, and genuine connections. He suggests that:
1. Simplicity frees us from burdens.
2. Self-focus hinders meaningful relationships.
3. Superficial connections bring harm.
4. Religious divisions cause human suffering.
5. Art and ideas transcend mortality.
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