Wednesday 22 February 2023

 साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,

सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं 
‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।


भावार्थ:-  घोड़े पर सवार छत्रपति शिवा जी वीरता और कौशल से परिपूर्ण अपनी चतुरंगिणी सेना की अगुआई करते हुए जंग जीतने के लिए निकल पड़े हैं। बजते हुए नगाड़ों की आवाज़ और मतवाले हाथियों के मद से सभी नदी-नाले भर गए हैं।

ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,
गजन की ठैल पैल सैल उसलत हैं ।
तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं ।।


 भावार्थ:- भीड़ के कोलाहल, चीख-पुकार के फैलने से रास्तों पर खलबली मच गयी है । मदमस्त हाथियों की चाल ऐसी है कि धक्का लगने से आस-पास के पहाड़ तक उखड़कर गिर जा रहे हैं।  विशाल सेना के चलने से उड़ने वाली धूल के कारण सूरज भी एक टिमटिमाते हुए तारे सा दिखने लगा है। विशाल चतुरंगिणी सेना के चलने से संसार ऐसे डोल रहा है जैसे थाल में रखा हुआ पारा हिलता है।
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बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
नाहीं ठहराने राव राने देस देस के ।
नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,
बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥


भावार्थ:- शिवाजी की सेना के झंडों के फहराने से और हाथियों के गले में बंधे हुए घण्टों की आवाजों से देश-देश के राजा-महाराजा पल भर भी न ठहर सकें।  नगाड़ों की आवाज़ से पहाड़ तक हिल गए, गांवों और नगरों के लोग इधर-उधर भागने लगे।

हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।
दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,
केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥


 भावार्थ:- शत्रु-सेना के हाथियों पर बंधे हुए हौदे घड़ों की तरह टूट गये। शत्रु-देशों की स्त्रियां, जब अपने-अपने घरों की ओर भागीं तो उनके केश हवा में इस तरह उड़ रहे थे, जैसे कि काले रंग के भौंरों के झुंड के झुंड उड़ रहे हों। शिवाजी की सेना के चलने की धमक से कछुए की मजबूत पीठ टूटने लगी है और शेषनाग का फन मानो केले के पत्तों की तरह फैल गया।

इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,
रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।

पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥

दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।

तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥

भावार्थ -
 जिस प्रकार जंभासुर पर इंद्र, समुद्र पर बड़वानल, रावण के दंभ पर रघुकुल राज, बादलों पर पवन, रति के पति अर्थात कामदेव पर शंभु अर्थात भगवान शिव, सहस्त्रबाहु पर  परशुराम, पेड़ों के तनों पर दावानल, हिरणों के झुंड पर चीता, हाथी पर शेर, अंधेरे पर प्रकाश की एक किरण, कंस पर कृष्ण भारी हैं उसी प्रकार म्लेच्छ वंश पर शिवाजी शेर के समान हैं।
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शिवाजी का शोर्य)
ऊँचे घोर मन्दंन के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मन्दर के अंदर रहाती हैं |
कंदमूल भोग करे, कन्दमूल भोग करे,
तीन बेर खाती ते वै तीन बैर खाती हैं |
भूषन सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
बिजन डुलाती ते बे बिजन डुलाती हैं |
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रस्त,
नग्न जड़ाती ते वे नगन जड़ाती हैं |
गडन गुंजाय गधधारण सजाय करि,
छाडि केते धरम दुवार दे भिखारी से. |
साहि के सपूत पूत वीर शिवराजसिंह,
केते गढ़धारी किये वनचारी से |
भूषण बखाने केते दीन्हे बन्दीखानेसेख,
सैयद हजारी गहे रैयत बजारी से |
महतो से मुंगल महाजन से महाराज,
डांडी लीन्हे पकरि पठान पटवारी से |

दुग्ग पर दुग्ग जीते सरजा सिवाजी गाजी,
उग्ग नाचे उग्ग पर रुण्ड मुँह फरके |
भूषण भनत बाजे जीती के नगारे भारे,
सारे करनाटी भूप सिहल लौं सरके ||
.मारे सुनि सुभट पनारेवारे उदभट,
तारे लागे फिरन सितारे गढ़धर के |
बीजापुर बीरन के, गोकुंडा धीरन के,
दिल्ली उर मीरन के दाड़िम से दरके ||
अंदर ते निकसी न मन्दिर को देख्यो द्वार,
बिन रथ पथ ते उघारे पाँव जाती हैं |
हवा हु न लागती ते हवा तो बिहाल भई,
लाखन की भीरी में स्म्हारती न छाती हैं. ||

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भूषण भनत सिवराज तेरी धाक सुनि,
हयादारी चीर फारी मन झुझ्लाती हैं |
ऐसी परी नरम हरम बादशाहन की,
नासपाती खाती तै वनासपाती खाती हैं ||
बेद राखे विदित पुरान परसिध राखे,
राम नाम राख्यो अति रसना सुधर में ||
हिन्दुन की चोटी रोटी राखी हैं सिपहीन की,
काँधे में जनेऊ राख्यो माला राखी गर में |
मिडी राखे मुग़ल मरोड़ी राखे पातसाही,
बैरी पिसी राखे बरदान राख्यो कर में ||
राजन की हद राखी तेगबल सिवराज,
देवराखे देवल स्वधर्म राख्यो घर में ||


शिवाजी महाराज कविता हिंदी अर्थ (Hindi Meaning of Shivaji Maharaj Poem)
कवि भूषण कहते हैं , शत्रु पक्ष की स्त्रियाँ जो बड़े-बड़े भवनों में रहा करती थी. वे अब शिवाजी के भय से भवन छोड़कर कंदराओ में जा रही हैं. शत्रु दल की स्त्रियाँ पहले जो मेवा मिष्ठान खाया करती थी, अब शिवाजी महाराज के डर से पेड़ की जड़े खा रही हैं.

जिनके पास खाने पीने की चीजों की कमी नही थी, दिन में दिन वक्त खाया करती थी. वे जंगल में रहकर मुश्किल से तीन बैर ही खा रही हैं. जिनके शरीर कीमती आभुशनो से लदे हुआ करते थे, अब भूख से शरीर शिथल हुआ जा रहा हैं.

जिनके ऊपर पवन के लिए पंखे ढुलाए जाते थे, अब अपनी रक्षा के लिए निर्जन वनों में घूम रही हैं. हे शिवाजी, जो स्त्रियाँ नगों से जटित आभूषण पहना करती थी. वे तुम्हारे भय से नग्नावस्था में ठंड से कंपकपा रही हैं.

वीर शिवाजी रोहित सुलतानतुरी
19 फरवरी 1630 जन्मे महाराष्ट्र दुर्ग शिवनेरी,
 धन्य हुई धरती भारत की हम करते जयकार तेरी।
 जिसका नाम नहीं मरता हर दिल में बस जाता है,
 ऐसा वीर पुरूष क्षत्रपति शेर शिवाजी कहलाता है।
 जिसके दम पर भगवा ऊंचे गगन में लहराता है,
 ऐसे वीर शिवा जी को ये रोहित शीश झुकाता है।
 रण में देख जिसे दुश्मन थर थर कांप जाता है,
 मूछों पर दे ताव जो वो क्षत्रिय कहलाता है।
 वीर शिवाजी सिर्फ नाम नहीं वीरता की अमर कहानी है,
 वह भारत का वीर क्षत्रियता की अमिट निशानी है।
 आत्मबल सामर्थ्य देता ऐसा नाम तुम्हारा है,
 भगवा जीवित है शान से ये उपकार तुम्हारा है।
 बुलन्द हौंसले से एक साथ कई शत्रु मार गिराते थे,
 दुश्मन की छाती में ऐसे भगवा गाड़ के आते थे।
 मुगल सल्तनत को जिसने चूर चूर बरबाद किया,
 बरस पड़े काल बन मुगलों का जीना मुहाल किया।
छत्रपती शिवाजी महाराज कविता Shivaji Maharaj Kavita In Hindi
मुगलों की सल्तनत पे उसने वार किया था ऐसा कुछ,
 दंग रह गई आदिलशाही-निजामशाही है ये सच।
 शिवनेरी पे जन्म हुआ रख दिया शिवाजी नाम है,
 शिवाई माता के आशीर्वच का ये लाया पैगाम है।
 युद्धनीति को सीखते दादोजी से धर्म जिजाऊ से ,
 राम-कृष्ण की तरह तुम भी धर्म बचाना कहा उस से।
 शिवबा ने कर ली प्रतिज्ञा सामने है रायरेश्वर
 कीलों का है महत्त्व अद्भुत, तोरणा से शुरुआत कर।
 अफजलखाँ ने बीड़ा उठाया विजापूर दरबार में,
 बाघ-नखों से चीर दिया है उदर को उस संहार में।
 जीवा महाला ने मारा सय्यद बंडा को वार से,
 अफजल की सेना भागे फाजल को लेकर हार से।
 सिद्दी जौहर ने है घेरा पन्हाला को चारों ओर,
 बाजी ने बाजी लगाई प्राण के उनकी टूटी डोर।
 मुरारबाजी शूरवीर थे लड़े पुरंदर रक्षण पे,
 स्वामिभक्त थे उनके ऐसे उदार अपने जीवन पे।
 बंदी बन गए आगरा में थे हुई अचानक बीमारी,
 संतों को उपहार मिठाई भेष बदल के निकली सवारी।
 लाल महल पे कब्ज़ा करके शाइस्ता है रहने लगा,
 काटी उसकी उँगलियाँ, जान न गई, खून बहने लगा।
 भारत में सबसे पहले है नौसेना का किया निर्माण,
 कीलों और मनुष्यों का किया संगठन, नारी-सम्मान।
 युद्ध प्रशासन में हैं आगे, जनता को देखें हैं सुखी,
 नेतोजी को लिया धर्म में, किसी को कभी किया न दुखी।
 गुरुवर उनके थे संतों में समर्थ और तुकाराम,
 अष्टप्रधान मंडल की स्थापना, शुरू हुआ राजा का काम।
 रामराज्य के बाद है ऐसा राज्य हुआ वो पहली बार,
 स्वराज्य की उसने की स्थापना और शत्रु का किया संहार।
Poem on Shivaji Maharaj in Hindi शिवाजी महाराज पर कविता हिंदी में
सुसंस्कृत, सम्पन्न था भारत, थी ठाठ-बाट राजाओं की,
 नजर लग गई जानें कैसे, बर्बर आताताईयों की।
 महावीर योद्धाओं से यूं ,भारत का इतिहास भरा है,
 आज कहानी आओ सुन लें, जिनसे नव इतिहास बना है।
 जिनके पिता शाहजी थे, माता जीजा धर्म परायण,
 जन्म लिया शिवनेरी दुर्ग में बालक हुआ कर्तव्य परायण।
 तीर, तलवार औ भाले-बरछे, वीर शिवा के खेल-खिलौने थे,
 युद्ध-कौशल, शासन-प्रबंध में, अद्भुत और अनोखे थे।
 नारी और सब धर्मों का, सम्मान हमेशा करते थे,
 वीर शिवाजी भारत पर, अभिमान हमेशा करते थे।
 छापामार युद्ध में काबिल, नौसेना के जनक हुए,
 जैसे को तैसा की नीति, रणनीतिकार वो गजब हुए।
 जगा देशप्रेम जनमानस में, सबमें है स्वाभिमान भरा,
 एक मराठा सौ पर भारी, इतना सबमें विश्वास भरा।
 जन्मभूमि जो अपनी है, मुगलों का क्यों अधिकार यहाँ,
 क्यों करें गुलामी उनकी हम, मिटने को सब तैयार यहाँ।
 येन केन प्रकारेण युद्ध में, जीतना जरूरी होता है,
 पूर्ण स्वराज की खातिर तो बलिदान जरूरी होता है।
 जहाँ जरूरत पड़ी संधि की, झट-पट मित्र बना लेते,
 जहाँ समझते शत्रु बली है, छुपकर काम तमाम करते।
 भर हुंकार कह महादेव, नाकों दम कर दी मुगलों की,
 चुनकर गद्दारों को मारा, कभी हाथ न आए मुगलों की।
 कर्म यज्ञ की ज्वाला में, सर्वस्व समर्पित किया जिसने,
 आओ उनकी जन्म-तिथि पर, देश-प्रेम की लें कसमें।   
 ————– नूतन बाला
महाकवि भूषण की छत्रपति शिवाजी की कविता
साजि चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ि,
 सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं 
 ‘भूषण’ भनत नाद विहद नगारन के,
 नदी नद मद गैबरन के रलत है ।।
 ऐल फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल,
 गजन की ठैल पैल सैल उसलत हैं ।
 तारा सो तरनि धूरि धारा में लगत जिमि,
 थारा पर पारा पारावार यों हलत हैं ।।
 बाने फहराने घहराने घण्टा गजन के,
 नाहीं ठहराने राव राने देस देस के ।
 नग भहराने ग्रामनगर पराने सुनि,
 बाजत निसाने सिवराज जू नरेस के ॥
 हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के,
 भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।
 दल के दरारे हुते कमठ करारे फूटे,
 केरा के से पात बिगराने फन सेस के ॥
 इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडब सुअंभ पर,
 रावन सदंभ पर, रघुकुल राज हैं।
 पौन बारिबाह पर, संभु रतिनाह पर,
 ज्यौं सहस्रबाह पर राम-द्विजराज हैं॥
 दावा द्रुम दंड पर, चीता मृगझुंड पर,
 'भूषन वितुंड पर, जैसे मृगराज हैं।
 तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
 त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥


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